Header Ads Widget

Responsive Advertisement

यनफरम सवल कड कय ह? कय कदर सरकर उततरखड सरकर क डरफट पर करग वचर

विदेश दौरे से वापस आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता को लेकर बयान दिया. भोपाल में उन्होंने कहा कि एक घर में दो क़ानून नहीं हो सकते हैं. प्रधानमंत्री के भाषण में संकेत मिलने के बाद इसका विरोध भी शुरू हो गया है. इसके तहत हर नागरिक के लिए एक समान क़ानून होगा. कानून का किसी धर्म विशेष से ताल्लुक नहीं होगा. अलग-अलग धर्मों के पर्सनल लॉ ख़त्म हो जाएंगे. शादी, तलाक़ और ज़मीन-जायदाद के मामले में एक ही क़ानून चलेगा. धर्म के आधार पर किसी को भी विशेष लाभ नहीं मिलेगा.

यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड संविधान के नीति निर्देशक तत्व का हिस्सा है

यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड का ज़िक्र संविधान में भी दिखता है. संविधान के निर्माताओं ने यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड को नीति निर्देशक तत्वों के तहत भविष्य के एक लक्ष्य की तरह छोड़ दिया था. संविधान के अनुच्छेद 44 में नीति निर्देशक तत्वों के तहत कहा गया है कि भारत के राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड को सुरक्षित करने का प्रयास करना चाहिए. लेकिन साथ ही अनुच्छेद 37 में कहा गया है कि नीति निर्देशक तत्वों का उद्देश्य लोगों के लिए सामाजिक आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना और भारत को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित करना है.

गौरतलब है कि नीति निर्देशक तत्व सरकार की ज़िम्मेदारी को दिखाते हैं लेकिन इन पर अमल ज़रूरी नहीं है. लेकिन देर-सबेर अमल हो सके तो बेहतर है. मौलिक अधिकारों की तरह इन्हें लेकर न्यायालय में सरकार को चुनौती नहीं दी जा सकती है.

 हर धर्म में अपने-अपने नियम है

  • मुस्लिम पर्सनल लॉ में नाबालिग लड़की की शादी की इजाज़त है.
  • ईसाई महिलाएं अपने बच्चों की प्राकृतिक अभिभावक नहीं मानी जाती.
  • सिखों के तलाक़ में हिंदू विवाह क़ानून चलता है.
  • पारसी गोद ली हुई बेटी का अधिकार नहीं मानते.
  •  हिंदू क़ानून में शादी से बाहर पैदा हुए बच्चों का कोई हक़ नहीं है.

अब सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आखिर ऐसा समान नागरिक संहिता बनाना क्या आसान काम है जिससे सभी दल के लोग सहमत हों. फिलहाल उत्तराखंड में एक विशेष पैनल बनाया गया था जिसने अब उत्तराखंड में कॉमन सिविल कोड का मसौदा तैयार कर लिया है. उसकी कुछ ख़ास बातें आपको हम बता रहे हैं.

उत्तराखंड समान नागरिक संहिता का क्या है ड्राफ्ट? 

  • लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल की जाए.
  • शादी का पंजीकरण अनिवार्य हो.
  • लिव-इन रिलेशन में रहने वाले को परिवार को जानकारी देनी होगी.
  • हलाला, इद्दत जैसी कुरीतियों समाप्त की जाए.
  • आमतौर पर मुस्लिम धर्म में शादी टूटने पर ये प्रथाएं अमल में.
  • सभी धर्म के लोग क़ानून के माध्यम से तलाक लें.
  • एक से ज़्यादा पति या पत्नी रखने की इजाज़त नहीं होगी. 

कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल फिलहाल इसपर अपना स्टैंड खुलकर साफ़ नहीं कर रहे हैं. ऐसे में अब सरकार के सामने क्या-क्या विकल्प है.सरकार ने यूसीसी पर विधि आयोग बनाया है जो कि इस वक्त आम लोगों से राय ले रहा है. 

यूसीसी कैसे बनेगा?

  • विधि आयोग और उत्तराखंड कानून (अगर बनता है) के आधार पर केंद्र सरकार अपना विधेयक बना सकती है.
  • उस विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद संसद में रखा जाएगा.
  • संभवत यह शीतकालीन सत्र में ही हो.
  • संसद में रखने के बाद सरकार पर है कि इसे स्टैंडिंग कमेटी में भेजे या न भेजे.
  • अनुच्छेद 370 के खात्मे के विधेयक को स्टैंडिंग कमेटी में नहीं भेजा गया था.
  • संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलने के बाद यह कानून बनेगा.
  •  इस बीच, कुछ अन्य बीजेपी शासित राज्य उत्तराखंड के कानून के आधार पर अपने यहां कानून बना सकते हैं.


from NDTV India - Latest https://ift.tt/1eaY7tv

Post a Comment

0 Comments

धर्मेंद्र नहीं इस सुपरस्टार से होने वाली थी हेमा मालिनी की शादी, लेकिन ही-मैन ने टाइम पर पहुंच कर दिया ये कारनामा

Ad