फाल्गुनी पाठक की कहानी शुरू होती है गुजरात के एक ऐसे परिवार से जिसमें चार बेटियां थीं. चौथी बेटी के जन्म से 7-8 साल बाद घर में एक और नया मेहमान आने वाला था. हर किसी को उम्मीद थी कि इस बार बेटा पैदा होगा. लेकिन भगवान की इच्छा से उस घर में एक और लक्ष्मी आई. फर्क बस इतना था कि बेटे जैसी बेटी. बेटे जैसी इसलिए क्योंकि उसे बचपन से ही लड़कियों के कपड़े पहनने का मन नहीं करता था. उसने लड़कियों की तरह कभी लंबे बाल नहीं रखे. स्कूल में बहुत सख्ती होती थी इसलिए ड्रेस जरूर पहन ली वरना उसे सलवार-शूट पहने कभी किसी ने देखा ही नहीं. ऐसे ही बाल भी कानों के थोड़े नीचे तक पहुंचे नहीं कि उसने उन्हें कटवा लिया. घर की सबसे छोटी बेटी थी इसलिए थी भी सबकी लाड़ली. आप आज भी उस लड़की को देखेंगे तो बात व्यवहार से वो आपको कहीं से लड़की नहीं लगेगी. ये दिलचस्प कहानी फाल्गुनी पाठक की है. जो ना सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी डांडिया और गरबा क्वीन के तौर पर जानी जाती हैं. 90 के दशक में हिंदुस्तान में कई इंडीपॉप सिंगर्स आए. शुरुआत हुई थी बाबा सहगल से. वो दौर था एम टीवी का. एक अलग किस्म का मॉर्डन और अलग संगीत हिंदुस्तान में अपनी जगह बना रहा था. अलीशा चिनॉय, बाली ब्रह्मभट्ट, सुनीता राव, पलाश सेन, जैजी बी, लकी अली जैसे कलाकारों ने इस दशक में कई हिट एल्बम दिए. इसी फेहरिस्त में नाम जुड़ा फाल्गुनी पाठक का. फाल्गुनी को बचपन से ही गाने का शौक था. बड़ी बहन ने भी संगीत की विधिवत तालीम ली थी. फाल्गुनी पाठक भी शौकिया गाती गुनगुनाती थीं. ऐसे हुई फाल्गुनी पाठक के करियर की शुरुआत 9 साल की थीं जब उन्होंने पहली बार स्टेज शो में हिस्सा लिया. एक ऑरकेस्ट्रा में उन्होंने फिल्म ‘कुर्बानी’ का बड़ा सुपरहिट गाना गाया- लैला ओ लैला. छोटी सी बच्ची के मुंह से जोशभरी गायकी को लोगों ने पसंद किया. अगले ही साल उन्हें एक गुजराती फिल्म में भी गाने का मौका मिला. उस वक्त उनकी उम्र थी- करीब दस साल. बड़ी बात ये है कि वो गाना उन्होंने मशहूर प्लेबैक सिंगर अलका यागनिक के साथ गाया था. इसके बाद फाल्गुनी पाठक का ऑरकेस्ट्रा में गायकी का सिलसिला चल निकला. 1987 में उन्होंने डांडिया नाइट्स में गाना शुरू किया. कम उम्र में ही वो एक व्यस्त कलाकार हो गई थीं. स्टेज पर नॉन स्टॉप गाने गाना आसान नहीं था. उन गानों की लिस्ट तैयार करना. उन्हें एक लड़ी में पिरोना. धीरे धीरे यही फाल्गुनी पाठक की ‘यूएसपी’ बन गई. वो 1998 का साल था, जब यूनिवर्सल म्यूजिक कंपनी ने फाल्गुनी पाठक का पहला एल्बम निकाला. चूड़ी जो खनकी हाथों में याद पिया की आने लगी भीगी भीगी रातों में. इस गाने ने फाल्गुनी पाठक को रातों रात पूरे हिंदुस्तान में पॉपुलर कर दिया. अब वो ऑरकेस्ट्रा और डांडिया नाइट्स से अलग एक लोकप्रिय सिंगर बनने के रास्ते पर थीं. रिया सेन को भी इसी गाने ने पहली बार पहचान दिलाई. जिसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में भी काम किया. इस गाने का संगीत उस दौर में अपनी पहचान बना रहे समीर सेन और दिलीप सेन की जोड़ी ने किया था. खैर, गाना हिट हो गया. तमाम म्यूजिक चैनलों पर काउंटडाउन में गाना टॉप पर रहा. इस गाने के वीडियो में रिया सेन के साथ साथ फाल्गुनी पाठक को भी फिल्माया गया था. लिहाजा उन्हें उन लोगों ने भी पहचानना शुरू कर दिया जो डांडिया या ऑरकेस्ट्रा के उनके सुनने वालों में नहीं थे. उनकी इस कामयाबी को डायरेक्टर प्रोड्यूसर राधिका राव ने अगले साल भुनाया. फाल्गुनी की अगली एल्बम आई- मैंने पायल है छनकाई. अब तो आ जा ओ हरजाई. इस गाने ने भी कामयाबी के कीर्तिमान स्थापित किए. ‘टीन एजर्स’ के लिए फाल्गुनी पाठक के गाने प्यार की नई खुशबु लेकर आए. जिसमें थोड़ी बोल्डनेस थी और साथ ही साथ मिठास भी. ये फाल्गुनी पाठक की मिठास भरी गायकी का ही कमाल था कि कई नए चेहरों को उनके एल्बम के बाद फिल्मों में ब्रेक मिला. ऐसा ही एक नाम आयशा टाकिया का भी है. आयशा मॉडलिंग जरूर करती थीं लेकिन पहली बार उन्हें ढंग से फाल्गुनी पाठक के एल्बम में ही नोटिस किया गया. ये साल था 2000 और उस साल फाल्गुनी की एल्बम आई थी- मेरी चुनर उड़ उड़ जाए. 2004 तक यानी इंडीपॉप में एंट्री के बाद करीब 6 साल तक फाल्गुनी पाठक की जमकर धूम रही. एल्बम से लेकर स्टेज शो तक वो लगातार व्यस्त रहीं. जब एक बार फिर बदला संगीत का परिदृश्य फिर धीरे धीरे हिंदुस्तानी संगीत का परिदृश्य एक बार फिर बदला. इंडीपॉप के जितने कलाकार एक वक्त पर राज कर रहे थे, एक एक करके ‘आउट ऑफ सीन’ होते चले गए. इस बदलते दौर में फाल्गुनी पाठक ने वापस अपने डांडिया नाइट्स की तरफ रूख किया. अब उनकी एक बड़ी पहचान बन चुकी थी. उनके पास अपने गाए तमाम हिट गाने थे. जिसके बीच-बीच में वो दूसरे कलाकारों के गाने भी गाती थीं. 1991 में सुनीता राव का गाया गाना ‘परी हूं मैं’ बहुत हिट हुआ था. वो गाना आज भी लोग बहुत पसंद करते थे. इस गाने का जिक्र हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इस गाने को फाल्गुनी पाठक ने भी खूब गाया है. गुजरात में बहुत से लोगों को लगता है कि ये सुनीता राव का गाया नहीं बल्कि फाल्गुनी पाठक का गाया गाना है. पिछले करीब एक दशक से फाल्गुनी पाठक अलग अलग टीवी कार्यक्रमों में तो नजर आती हैं लेकिन अब एल्बम गायकी से वो लगभग दूर हैं. हां, स्टेज शो करने में वो आज भी बेहद व्यस्त कलाकारों में से हैं. अभी कुछ साल पहले ऐसी खबरें थीं कि नवरात्र के समय वो अपने कार्यक्रमों से करोड़ो में कमाई करती हैं. हालांकि इस कमाई से कहीं अलग उनके फैंस का प्यार है जो उन्हें अब भी मिलता है. जिसे फाल्गुनी पाठक गॉड गिफ्टेड मानती हैं.
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