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रोज़ लगभग 200 km चलता हूं और कोई पानी भी नहीं पूछता

हमारा दिन शुरू होता है इंतजार से. पहले ऑर्डर के लिए. फिर ट्रैफिक जाम में फंसकर. वहां से निकलते हैं तो ऊंचे-ऊंचे घरों की सीढ़ियां इंतजार में होती हैं. कितनी ही बार संकरी सीढ़ियों पर अंधेरे में गिरते हुए बचा हूं. फिर दरवाजा खुलता है और शुरू होता है असल इंतजार- डिलीवरी लेने वाले के चेहरे पर मुस्कान का. लोगों को लगता है कि पानी पिलाने या मुस्कुराने से उनकी तौहीन हो जाएगी.

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