जीवन के प्रति गहरी आस्था से ही ईर्ष्या से बचना संभव है. जो आपका है, उससे कैसी ईर्ष्या, जो आपका नहीं. इससे ईर्ष्या क्यों. जिसके हासिल में हमारा हिस्सा नहीं, उसके लिए मन की कोमल कोशिका को कठोर बनाने का कोई अर्थ नहीं.
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