भारतीय निशानेबाजी में पिछले कुछ समय से युवाओं का बोलबाला है. इन निशानेबाजों में सौरभ चौधरी (saurabh chaudhary), मनु भाकर (manu bhakar) और आदर्श सिंह (adarsh singh) के नाम शुमार किए जा सकते हैं, इन तीनों निशानेबाजों को अगले कुछ दिनों में दोहरे इम्तिहान से गुजरना है. इस तिकड़ी को राजधानी के कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में 20 फरवरी से शुरू होने वाले आईएसएसएफ विश्व कप में 2020 के टोक्यो ओलिंपिक के लिए कोटा स्थान हासिल करने का प्रयास करने के अलावा बोर्ड की परीक्षा पास करने का भी प्रयास करना है. इन तीनों में सौरभ चौधरी और आदर्श सिंह 12वीं और मनु भाकर दसवीं क्लास की परीक्षा देनी है. तीनों का पढ़ाई पर भी है ध्यान इन तीनों निशानेबाजों में मनु भाकर और सौरभ चौधरी तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलताएं हासिल कर चुके हैं. पर आदर्श सिंह का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक बिखेरने का यह पहला मौका होगा. पर यह तीनों ही निशानेबाज पढ़ाई पर भी ध्यान देने वाले हैं. इन तीनों को ही विश्व कप में भाग लेने के बाद मार्च माह में परीक्षा का सामना करना है. मनु भाकर कहती हैं कि मैं जानती हूं कि पढ़ाई मेरे लिए बहुत जरूरी है. अभ्यास पर आजकल जोर रहने के कारण पढ़ाई के लिए मुश्किल से समय निकाल पाते हैं. पर मैं अच्छे नंबरों से परीक्षा पास करना चाहती हूं. वहीं सौरभ चौधरी भी पढ़ाई की अहमियत को समझते हैं. वह कहते हैं कि पिछले साल शूटिंग प्रतियोगिताओं में व्यस्त रहने की वजह से स्कूल चार-पांच दिन ही जा सका. लेकिन मेरे स्कूल के टीचरों ने इस साल मेरे लिए खासतौर से विशेष क्लासेस लगाकर मेरा कोर्स तो पूरा करा दिया है और अब मैं रिवाइस कर रहा हूं. वहीं फरीदाबाद के पिस्टल निशानेबाज आदर्श सिंह 12वीं में कॉमर्स के छात्र हैं. वह कहते हैं कि मैं आजकल शूटिंग अभ्यास के अलावा किसी तरह पढ़ाई के लिए भी समय निकाल रहा हूं. पर पढ़ाई के लिए जितना समय चाहिए, वह नहीं निकल पा रहा है. फिर भी वह अच्छे नंबरों से परीक्षा पास करना चाहते हैं. ये भी पढ़ें- All England Championship: आसान नहीं होगी सिंधु-सायना की राह, मिला मुश्किल ड्रॉ मुश्किलों से पार पाकर पहुंचे हैं यहां तक ये तीनों ही निशानेबाज जज्बे वाले हैं और वह खासी मुश्किलों को पार करके इस मुकाम तक पहुंचे हैं. मेरठ के कलीना गांव के रहने वाले सौरभ चौधरी किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं और उन्होंने भी इस मुकाम तक पहुंचने के लिए बहुत पापड़ बेले हैं. वह बागपत के बिनौली गांव स्थित शूटिंग रेंज में अभ्यास के लिए जाया करते थे. इसके लिए उन्हें प्रतिदिन 12 किमी साइकिल चलाकर जाना पड़ता था. यह उनकी लगन का ही परिणाम है कि वह लगातार सफलताएं हासिल कर रहे हैं. मनु भाकर सौरभ चौधरी की तरह सामान्य परिवार से तो ताल्लुक नहीं रखती हैं. पर वह एक के बाद एक खेल को छोड़ती हुई शूटिंग तक पहुंचीं और इसे अपनाने के साल भर के अंदर ही सीनियर वर्ग में झंडे गाड़ने में सफल हो गईं. वह शूटिंग में आने से पहले स्केटिंग, कबड्डी और खो-खो में हाथ आजमाने के बाद कराटे में आई और इसकी राष्ट्रीय चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने के बाद पिता रामकिशन की इच्छा से निशानेबाजी को अपनाया. दिलचस्प है आदर्श सिंह की कहानी आदर्श सिंह की कहानी तो और भी दिलचस्प है. उनके जन्म लेने के छह दिनों बाद ही रीढ़ के पास गांठ निकलवाने के लिए ऑपरेशन करना पड़ा. वह पांच साल पहले यानी 12 साल की उम्र तक स्कूल की क्रिकेट टीम में विकेटकीपर रहने के साथ बैडमिंटन टीम में भी थे. लेकिन एक दिन पीठ में जबर्दस्त दर्द होने के बाद उनको इन दोनों खेल को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. उस समय तक उनकी समझ में आ गया था कि शारीरिक मजबूती वाले खेल वह नहीं खेल सकते हैं. इस कारण उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज अपनी बहन रिया सिंह से प्रेरणा लेकर पिस्टल शूटिंग को अपना लिया. मनु ने कम उम्र में पाई सफलता मनु भाकर ने पिछले साल आईएसएसएफ विश्व कप में सबसे कम उम्र में गोल्ड मेडल जीतने का गौरव हासिल था. भले ही वह 10 मीटर एयर पिस्टल में अपने राष्ट्रीय चैंपियनशिप वाले प्रदर्शन को दोहराने में असफल रहीं, लेकिन फिर उन्होंने स्वर्ण जीत लिया था. 10 मीटर एयर पिस्टल की मिक्सड स्पर्धा में भाग्य के सहारे भाग लेने का मौका मिला. इस स्पर्धा में आमतौर पर हिना सिद्धू और जीतू राय भाग लेते रहे हैं. हिना इस बार भाग लेने नहीं गईं और जीतू के रैंकिंग में पिछड़ने से मनु और प्रकाश मिथरावाल को भाग लेने का मौका मिला और यह जोड़ी मौके को भुनाने में सफल रही. मनु और प्रकाश की जोड़ी ने 476.1 अंकों के साथ स्वर्ण पदक जीता. उन्होंने फाइनल में क्रिस्टियन रेट्ज और सांद्रा रेट्ज की अनुभवी जर्मन जोड़ी को हराया. क्रिस्टियन रेट्ज 2016 के रियो ओलिंपिक के 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल के स्वर्ण पदक विजेता हैं. इस जर्मन जोड़ी ने 475.2 अंक बनाए. ये भी पढ़ें- यहां रन का मतलब धावनांक और टॉस का मुद्राक्षेपणम है! यह क्रिकेट थोड़ा 'हटके' है... सौरभ चौधरी हैं ओलंपिक पदक के दावेदार सौरभ चौधरी ने छोटी सी उम्र में दिग्गज निशानेबाज वाली छवि बना ली है. वह पिछले साल ब्यूनस आयर्स यूथ ओलिंपिक खेलों की 10 मीटर एयर पिस्टल में स्वर्ण जीतने के बाद से अंतरराष्ट्रीय निशानेबाजी जगत में छा गए हैं. वह चांगवोन आईएसएसएफ विश्व चैंपियनशिप में इस स्पर्धा का ही स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे. फिर एशियाई खेलों में सबसे कम उम्र में स्वर्ण पदक जीतने वाले निशानेबाज बने. वह 2017 की तिरुवनंतपुरम राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पहली बार उतरे. सामने जीतू राय, शहजर रिजवी और ओमप्रकाश भितरावाल जैसे अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज थे. वह दवाब में बिखर गए और आठवें स्थान पर रहे. इसके बाद सौरभ के एशियाई खेलों में भाग लेने की कोई उम्मीद नहीं बची थी. लेकिन इस चैंपियनशिप के सात माह बाद जर्मनी में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में भाग लेने भेजा गया और इसमें गोल्ड मेडल विश्व रिकॉर्ड के साथ जीतकर अपनी धाक जमा दी. इसी प्रदर्शन के आधार पर एशियाई खेलों के लिए चयन हुआ. इसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा है.
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